ओम कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने प्रणत:। क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः।।

मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कंद माता के रूप में क्यों पूजा जाता है?

 




मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कंद माता के रूप में क्यों पूजा जाता है?

 पूजन से क्या लाभ होता है - पढ़े पूरी कथा

सोनभद्रनवरात्र के पांचवें दिन देवासुर संग्राम के सेनापति भगवान् स्कंद अर्थात कार्तिकेय की माता देवीस्कंदमाता की आराधना होती है। 


कमल पुष्प के आसन पर विराजमान होने से इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। चेहरे पर विशेष तेज लिए देवी स्कंदमाता सिंह पर सवार रहती हैं। इनकी गोद में विराजमान हैं इन्हीं की सूक्ष्म स्वरुप छः सर वाली देवी। इनकी चार भुजायें हैं। दो हाथों में कमल पुष्प सुशोभित हैं, एक हाथ वर मुद्रा में है तथा एक हाथ सेअपनी गोद में विराजमान स्कंद को संभाले हुए हैं।
मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कंद माता के रूप में क्यों पूजा जाता है?
देवी स्कंदमाता का पूर्ण श्रद्धा भाव से किया गया पूजन मोक्ष प्रदान करने वाला माना गया है। मां भगवती की भक्ति और कृपा प्राप्त करने के लिए "या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।" मंत्र का जप किया जाता है। कहा जाता है कि नवरात्र के पांचवें दिन जो भक्त देवी स्कंदमाता को विशुद्ध हृदय से पूजा अर्चना करके प्रसन्न करते हैं, उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, ज्ञान का प्रकाश मिलता है तथा पारिवारिक कलह एवं अशांति से छुटकारा मिलता है। देवी स्कंदमाता के पूजन से त्रिदोष भी दूर होते हैं 

स्कंदमाता की पूजा के लिए लकड़ी की एक चौकी पर पीले रंग का नया वस्त्र बिछाकर कुंकुम से ॐ अंकित करते हैं तथा उस पर स्कंदमाता की मूर्ति या चित्र को स्थापित किया जाता है। मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए चौकी पर मनोकामना गुटिका भी रखते हैं। इनके पूजन में पीले रंग के पुष्प, वस्त्र एवं पीले रंग के खाद्य पदार्थ प्रसाद के रूप में अर्पित किये जाते हैं। स्कंदमाता की पूजा में अलसी को भी चढ़ाया जाता है। इससे ऋतु परिवर्तन से होने वाले अशुभ प्रभावों से छुटकारा मिलता है। प्रार्थना, भजन, कीर्तन और मंत्र जप द्वारा स्कंदमाता को प्रसन्न किया जाता है। देवी स्कंदमाता को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र का जप किया जाता है -

"सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्वी।।" देवी स्कंदमाता के पूजन के बाद कन्या के संग लांगुरों को भोजन कराना चाहिए।

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