कागजों के पन्नों में सिमट कर रह गई सरकार की मत्स्य योजना
बगैर किसानों के हस्ताक्षर व अंगुठा के निशान के सरकारी धन का भुगतान कराने का आरोप
डाला/सोनभद्र। जनपद में संचालित मातासुकेता केज कल्चर मछली पालन योजना अब भ्रष्टाचार और घोर अनियमितताओं का पर्याय बनती जा रही है। शासन की महत्वाकांक्षी मत्स्य पालन योजना, जिसका उद्देश्य मछुआरा समुदाय को आत्मनिर्भर बनाना था, आज विभागीय लापरवाही और ठेकेदारों की मिलीभगत के चलते सवालों के घेरे में है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार योजना के अंतर्गत बिना लाभार्थियों को मौके पर बुलाए, विभागीय अधिकारियों की उपस्थिति में ठेकेदारों को ही बुलाकर भुगतान की प्रक्रिया पूरी की गई। गंभीर आरोप यह हैं कि लाभार्थियों के नाम पर फर्जी हस्ताक्षर और अंगूठा का निशान लगवाकर सरकारी धन का भुगतान करा लिया गया। इस पूरे प्रकरण में वास्तविक लाभार्थी योजना से पूरी तरह बाहर रखे गए। कई किसानों को तो पता भी नहीं है कि उनके नाम से जो पैसा पास हुआ है उसे कहां लगाया गया। शिकायतकर्ता द्वारा जब इस मामले की लिखित शिकायत विभागीय अधिकारियों से की गई तो जिम्मेदार अधिकारियों ने यह कहकर शिकायत को नकार दिया कि आप लाभार्थी नहीं हैं, इसलिए आपको शिकायत करने का कोई अधिकार नहीं है। यह जवाब न केवल प्रशासनिक संवेदनहीनता को दर्शाता है, बल्कि सरकारी योजनाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी गंभीर प्रश्न खड़ा करता है। बताया जा रहा है कि मातासुकेता मत्स्य योजना के अंतर्गत सोनभद्र में घोर लापरवाही, बंदरबांट और नियमों के खुले उल्लंघन के नए-नए तरीके अपनाए गए। योजना की मूल भावना को ताक पर रखकर ठेकेदारों और कुछ विभागीय कर्मियों द्वारा लाभ उठाने का प्रयास किया गया है। स्थानीय लोगों और मछुआरा समुदाय में इस पूरे प्रकरण को लेकर गहरा रोष व्याप्त है। लोगों की मांग है कि प्रत्येक केज की जांच लाभार्थी और शिकायत कर्ता को मौके पर बुला कर उच्चस्तरीय जांच कराई जाए। जांच में दोषी पाए जाने पर अधिकारियों के साथ ही संबंधित ठेकेदारों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जाए। वास्तविक लाभार्थियों को उनका हक दिलाया जाए। उधर लगाए जा रहे आरोपों के बावत सहायक मत्स्य निदेशक से संपर्क कर उनका पक्ष जानने का प्रयास किया गया, लेकिन वे मौजूद नहीं मिले। लिहाजा उनका पक्ष नहीं लिया जा सका।
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